Google Carbon Credits: गूगल ने कार्बन डाईऑक्साइड निष्कासन (CDR) के क्षेत्र में भारतीय स्टार्टअप वराह के साथ एक महत्वपूर्ण करार किया है। इस समझौते के तहत, गूगल वराह से बायोचार के रूप में कार्बन क्रेडिट (Google Carbon Credits) खरीदेगा। वराह कृषि अपशिष्ट को बायोचार में बदलने की तकनीक पर काम करता है, जो वायुमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर उसे मिट्टी में वापस भेजता है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
Google Carbon Credits : कार्बन क्रेडिट क्या है?
कार्बन क्रेडिट एक ऐसा सिस्टम है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से काम करता है। एक कार्बन क्रेडिट एक मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड या समकक्ष ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को घटाने का प्रमाण होता है। यह सिस्टम मुख्य रूप से कार्बन ऑफसेट के रूप में कार्य करता है, जिसके जरिए कंपनियां अपनी प्रदूषण की जिम्मेदारी को कम करने के लिए इस क्रेडिट का उपयोग करती हैं।
गूगल और अन्य टेक कंपनियों का प्रयास
टेक्नोलॉजी कंपनियां अपनी गतिविधियों से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए कार्बन क्रेडिट का उपयोग करती हैं। गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां सालों से कार्बन क्रेडिट खरीदने का काम कर रही हैं। गूगल का लक्ष्य 2030 तक अपने संचालन को पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा पर शिफ्ट करना है, और इसके लिए वह कार्बन क्रेडिट खरीदने का प्रयास कर रहा है।
कार्बन क्रेडिट प्राप्त करने का तरीका
कंपनियां कार्बन क्रेडिट खुले बाजार से खरीद सकती हैं या फिर उन परियोजनाओं में निवेश कर सकती हैं, जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मदद करती हैं। इस तरह से प्राप्त धन का उपयोग पर्यावरणीय प्रोजेक्ट्स में किया जाता है, जैसे पेड़-पौधे लगाना, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना और ऊर्जा दक्षता में सुधार करना।
बायोचार: सस्ता और प्रभावी विकल्प
हालांकि सीडीआर के तहत कई महंगी तकनीकें मौजूद हैं, बायोचार एक सस्ता और प्रभावी विकल्प बन सकता है। भारत में हर साल इतना कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे पर्याप्त मात्रा में बायोचार बनाया जा सकता है, जो लाखों टन कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करने में मदद करेगा। गूगल ने 2030 तक एक लाख टन कार्बन क्रेडिट खरीदने का लक्ष्य रखा है, और इसके लिए वह भारत के छोटे किसानों से कृषि अपशिष्ट खरीदने का योजना बना रहा है।
कार्बन क्रेडिट की खरीद-बिक्री पर सरकारी नियंत्रण
भारत में कार्बन क्रेडिट की खरीद-बिक्री सरकार के नियमों के तहत होती है। सरकार यह निर्धारित करती है कि किस उद्योग या कंपनी को कितना उत्सर्जन करने की अनुमति है, और यदि कोई कंपनी निर्धारित सीमा से अधिक उत्सर्जन करती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
कार्बन क्रेडिट के फायदे
कार्बन क्रेडिट कंपनियों को अपने उत्सर्जन को नियंत्रित करने की प्रेरणा देता है, जिससे वायुमंडल में खतरनाक गैसों की मात्रा घटती है। इससे न केवल पर्यावरण को लाभ होता है, बल्कि स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, कार्बन क्रेडिट से प्राप्त धन का इस्तेमाल नए उत्सर्जन कम करने वाले प्रोजेक्ट्स में किया जाता है, जो दीर्घकालिक पर्यावरण सुधार के लिए सहायक होते हैं।