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डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग की फोन पर हुई बातचीत, भारत के खिलाफ चीन की शुरू की नई साजिशें

डोनाल्ड ट्रंप (Donaland Tump) जल्द ही अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले हैं। 20 जनवरी को ट्रंप अपनी नई पारी शुरू करेंगे। इस दौरान चीन, जो लंबे समय से अमेरिका का विरोधी रहा है, गंभीर चिंता में है। शुक्रवार शाम, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बातचीत की। इस चर्चा को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं। माना जा रहा है कि चीन, ट्रंप प्रशासन से अपने प्रति नरम रुख अपनाने की उम्मीद कर रहा है। हालांकि, ट्रंप के हाल के कठोर बयान चीन की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। इसी बौखलाहट में चीन भारत के खिलाफ चालें चलने से भी नहीं चूक रहा है।


भारत के खिलाफ चीन की नई रणनीति

चीन ने भारत को घेरने के लिए एक नई साजिश रची है। शी जिनपिंग ने अपने विस्तारवादी एजेंडे में अब भारत के एक करीबी पड़ोसी को भी शामिल कर लिया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ-साथ आर्थिक संकटों से जूझ रहे श्रीलंका को भी चीन ने अपने खेमे में खींचने की कोशिशें तेज कर दी हैं।


श्रीलंका-चीन समझौता: नया अध्याय

श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके, अपने चार दिवसीय चीन दौरे के दौरान, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले। इस बैठक में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को आगे बढ़ाने की कोशिश की। इसके तहत, श्रीलंका में चीन एक और हंबनटोटा पोर्ट बनाने की योजना बना रहा है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, कर्ज में डूबे श्रीलंका ने चीन के साथ 3.7 अरब डॉलर की डील साइन की है। यह समझौता श्रीलंका में एक नई तेल रिफाइनरी के निर्माण के लिए किया गया है। दावा किया जा रहा है कि इस रिफाइनरी की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 2 लाख बैरल होगी और इसे हंबनटोटा पोर्ट के पास स्थापित किया जाएगा।


चीन की रणनीति: हंबनटोटा पोर्ट का दुरुपयोग

हंबनटोटा पोर्ट, जिसे 2017 में श्रीलंका ने अपने कर्ज न चुका पाने की स्थिति में 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया था, अब चीन की नई रणनीतियों का अहम हिस्सा बन गया है। श्रीलंका में तेल रिफाइनरी की स्थापना, हिंद महासागर में चीन के प्रभाव को मजबूत करने का हिस्सा मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम चीन के ‘कर्ज-जाल कूटनीति’ का हिस्सा है, जहां वह छोटे देशों को कर्ज के माध्यम से अपने अधीन करने की कोशिश करता है।


हिंद महासागर में चीन का बढ़ता दबदबा

हंबनटोटा पोर्ट, जो दुनिया के प्रमुख समुद्री व्यापार मार्गों के करीब है, चीन के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत और अमेरिका को लंबे समय से आशंका है कि चीन इस बंदरगाह को सैन्य अड्डे के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। चीन हालांकि इस दावे से इनकार करता रहा है, लेकिन 2022 में चीनी जहाज ‘युआन वांग-5’ के हंबनटोटा पोर्ट पर रुकने के बाद से यह आशंका और गहरा गई है।


चीन के जहाज और डेटा संग्रह का खतरा

चीन के वैज्ञानिक रिसर्च जहाज ‘युआन वांग-5’ को चीन ने समुद्री शोध का हिस्सा बताया था। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये जहाज समुद्र के सतह और अन्य सामरिक डाटा को एकत्रित करने में सक्षम हैं। इस डेटा का उपयोग चीन, भारत के खिलाफ रणनीतिक गतिविधियों के लिए कर सकता है।


‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ से घेरने की साजिश

चीन हिंद महासागर में भारत को घेरने के लिए ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नामक रणनीति अपना रहा है। इसके तहत, चीन ने पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट, बांग्लादेश में चटगांव पोर्ट, और म्यांमार में क्यायूक-प्यू पोर्ट सहित कई ठिकानों को विकसित किया है। ये सभी भारत के लिए सामरिक चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं।


मालदीव और अन्य देशों पर चीन का दबदबा

चीन के कर्ज-जाल में फंसे देशों की सूची लंबी होती जा रही है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, और अफ्रीकी देशों के अलावा मालदीव भी इस सूची में शामिल है। मालदीव में चीन ने एक पूरे द्वीप को कर्ज के बदले लीज पर ले रखा है। अब चीन श्रीलंका पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।

निष्कर्ष:
चीन की इन गतिविधियों से स्पष्ट है कि वह अपनी विस्तारवादी नीतियों को जारी रखते हुए भारत को घेरने का प्रयास कर रहा है। हंबनटोटा पोर्ट और हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी नई रणनीतियां भारत के लिए चिंता का विषय हैं।

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